चेंच भाजी एक अल्प उपयोगी पत्तिदार सब्जी की उन्न्त कृषि तकनीक
विवेक कुमार कुर्रे, और डॉ. प्रवीण शर्मा


वैज्ञानिक नाम- कोरकोरस एक्यूटेंगुलस
कुल- टिलिएसी
चेंच भाजी छत्तीसगढ़ में बहुत प्रसिद्ध है ए किसान भाई इसकी खेती अपने बाड़ी में छोटे स्तर पर करते हैं ए जिसे पास के बाजार में बेच कर आय कमाते हैं । ऐसा कहा जाता है की छत्तीसगढ़ में छत्तीस प्रकार की भाजी पाया जाता है जैसे की करमताए लाल भाजी पोई भाजी आदिए उनमे से प्रमुख भाजी है चेंच भाजी ।
चेंच एक अल्प उपयोगी पत्तिदार सब्जी है, जिसे सब्जी जूट भी कहा जाता है । छत्तीसगढ़ में यह चेंच भाजी के नाम से मषहूर है । इसकी चिकनी पत्तियों एवं मुलायम शाखाओं को सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता हैं । चेंच भाजी की पत्त्यिॉं बिटा कैरोटिन का मुख्य स्त्रोत है इसके अतिरिक्त इसमें 18 सें 22 प्रतिषत् प्रोटीन पाया जाता है और प्रायः यह पाया गया है कि कड़वी किस्म में प्रोटीन की मात्रा मीठी वाली की तुलना में अधिक होती है । चेंच की पत्तियों में कड़वापन कोरकोरिन ग्लूकोसाइड के कारण होता है । इसलिए इसे कड़वा पात भी कहते है और ऐसी किस्में जिसमें कड़वा पन नहीे होता है उसे मीठा पात कहते है ।
चेंच की पत्तियों में पाये जाने वाले पोषक तत्व-
पोषक तत्व | मात्रा (प्रति 100 ग्राम) |
नमी | 81.4 ग्राम |
प्रोटीन | 5.1 ग्राम |
वसा | 1.1 ग्राम |
खनिज | 2.7 ग्राम |
रेशा | 1.6 ग्राम |
आयरन | 7.2 ग्राम |
कार्बोहाइड्रेटस | 8.1 ग्राम |
ऊर्जा | 65 कैलोरी |
कैल्षियम | 241 मिग्रा |
फास्फोरस | 83 मिग्रा |
स्त्रोतः गोपालन एवं सहयोगी (1999)
उद्भव एवं वितरण-
विष्व में कोरकोरस एक्यूटेंगूलस, कोरकोरस आलिटोरियस, कोरकोरस डिप्रेसस, कोरकोरस क्रस्चीएन्सन, कोरकोरस ट्राइडेन्स और कोरकोरस ट्राइकोलेरिस आदि प्रजाति की पत्तियों को सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है । विष्व में कोरकोरस प्रजाति बांग्लादेष, भारत, चीन, नेपाल, ब्राजील, नाईजिरिया आदि देषों में उगाया जाता है । भारत में पष्चिम बंगाल, असम, उडि़सा, बिहार, उ. प्र., कर्नाटका, केरल एवं तमिलनाडु आदि राज्यों में उगाया जाता है । छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, रायपुर, कोरबा, रायगढ़, सरगुजा, जषपुर, जांजगीर-चॉंपा, नारायणपुर, कांकेर, राजनांदगांव, बालोद के साथ-साथ छ.ग. के अन्य जिलों में भी किसान इसे बाड़ी में खेती करते हैं ।
वानस्पतिक वितरणः-
चेंच टिलिएसी कुल का पौधा है, टिलिएसी कुल में 40 वंष और 400 प्रजातियॉं है । इसमें वंष कोरकोरस के अंतर्गत 50-60 प्रजातियॉं पाई जाती है । चेंच का पौधा षाकिय 30-150 सेमी उॅंचाई का होता है और इसके अन्तिम सिरे में शाखाऐं निकलति है, पत्तियॉं एकान्तर क्रम में, चिकनी हल्के लाल हरे रंग की तथा हरे रंग की होती है । फूल पीले रंग तथा फल कैल्सूल गहरे भूरे रंग के होते है ।
जलवायु एवं मिट्टी-
चेंच की खेती उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु में कि जा सकती है । इसकी खेती के लिए 18-330 सेल्सियस उपयुक्त होता है । उच्च उर्वर मृदा जिसमें कार्बनिक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो एवं जल निकास की उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए । मृदा का पीएच 5-7 के बीच होना चाहिए ।
बीज एवं बुआई-
चेंच की एक हेक्टेयर क्षेत्र में खेती के लिए 1.5-2.5 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर की आवष्यकता होती है । बीज की बोआई छिड़कवा या कतार विधि से कि जाती है परंतु कतार विधि से बुआई करना उचित माना जाता है । क्योंकि इसमें खरपतवार प्रबंधन एवं अन्य कृषि क्रियाएॅं करने में आसानी होती है । बीज की बुआई 20×10 सेमी के अन्तराल में कि जाती है ।
खाद एवं उर्वरक-
25 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद, 50 किलो नाईट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस एवं 20 किला पोटाष प्रति हेक्टेयर कि सिफारिष कि जाती है । गोबर की खाद की पुरी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाष की पुरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए । नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा प्रथम तुड़ाई के बाद देना चाहिए ।
सिंचाई-
बुआई के तुरंत बाद हल्की सिचाई करनी चाहिए, गर्मी के समय में 5 से 7 दिन के अन्तराल में सिंचाई करनी चाहिए । बरसात के दिनों में मृदा की नमी के अनुसार आवष्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है । सिंचाई के साथ-साथ जल निकास की भी उत्तम व्यवस्था करनी चाहिए ताकि पानी खेत में जमा न हो पाए ।
खरपतवार नियंत्रण-
चेंच की खेती में अच्छी पैदावार लेने के लिए खरपतवारों का नियंत्रण महत्वपूर्ण है । प्रारंभिक अवस्था में ही खरपतवारों का नियंत्रण कर लेना चाहिए क्योंकि पौधों की वृ़िद्ध की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करने से मृदा में पूर्ण रूप से वायु संचार होता है । तथा खरपतवारों को रोकने में मदद मिलती है । पहली निंदाई बुआई के 15 से 20 दिनों में हाथों के द्वारा करना चाहिए । तीन से चार बार हाथों से निंदाई करके खरपतवारों का नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है ।
तुड़ाई एवं उपज-
चेंच की तुड़ाई दो प्रकार से की जा सकती है, क्लिपिंग विधि द्वारा चेंच की पहली तुड़ाई बुआई के तीन से चार सप्ताह बाद मुलायम पत्तियॉं एवं कोमल शाखाओं की तुड़ाई की जा सकती है इसके बाद 10 से 15 दिन के अन्तराल में तुड़ाई करते रहना चाहिए तथा दुसरी विधि से जब पौधे 40 से 50 सेमी उॅचाई के हो तब जमीन की सतह से उखाड़ लेना चाहिए ।
चेंच की उपज लगाये गए स्थान एव जलवायु ओैर कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है इसकी लगभग 10 से 15 टन हरी पत्तियों की उपज प्राप्त होती है ।







